top of page
Search

सूचना अधिकार अधिनियम 2005 से निराश न हो ..अगर मिला है हवाला 8(1)(J)का......

यदि RTI के तहत आपको वांछित सूचना नहीं मिल पाई? सूचना आयोग ने भी आपको समुचित राहत नहीं दी बल्कि आपकी अपील को ही खरिज कर दी? तो निराश मत होईये, एक बार आप विजिट करे *www.legalambit.org* आप सूचना मांगने के लिये सूचना अधिकार अधिनियम 2005 को नहीं बल्कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 को आजमाईये। जी हां भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 76 मे यह प्रावधान है कि आप लीगल फीस देकर किसी भी जन अधिकारी से उनके पास उपलब्ध दस्तावेज की सत्यापित प्रतिलिपी मांग सकते हैं। अगर तय समय पर दस्तावेज की प्रतिलिपी नहीं मिलती है तो सेवा में कमी की शिकायत अपने जिले के उपभोक्ता मंच को दे सकते हैं, जहां से आप वांछित सूचना के साथ आर्थिक नुकसान के मुआवजे की भी मांग कर सकते हैं। *सत्यपित प्रतिलिपी हेतु कैसै करें आवेदन:* 1. सादे कागज पर सीधे सम्बन्धित जन अधिकारी को सम्बोधित करते हुए आवेदन करें और 30 दिन के भीतर सूचना की मांग करें। 2. विषय मे लिखें - भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के तहत दस्तावेज के सत्यापित प्रतिलिपि के लिये आवेदन। 3. आवेदन पत्र के साथ 10 रुपये का पोस्टल आर्डर/egrass के माध्यम से भरा चालान भेजते हुए यह वादा करें कि सत्यापित प्रतिलिपी के लिये फीस का आंशिक भुगतान पोस्टल/ e चालान का संलग्न है, दस्तावेजो की फीस या चार्जेज का भी भुगतान करने के लिए लिख सकते है। 4. आवेदन डाक/स्पीड पोस्ट या ईमेल से भी भेजें सकते है *सूचना के लिये भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872, ही क्यों?* यूं तो सूचना मांगने के लिये सूचना अधिकार अधिनियम 2005 एक स्पेशल कानून है लेकिन इस कानून के तहत आमजन को वांछित सूचना नही मिल पाती है, सूचना आयुक्त जो कि सेवानिवृत नौकरशाह होते हैं, आमजन को सूचना एवम मुआवजा दिलाने के बजाय आमजन की अपील को ही खारिज कर देते हैं। इसलिये सूचना अधिकार कानून एवम इनके रखवाले सूचना आयोग से आमजन निराश हैं, ऐसे में भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 ही एकमात्र विकल्प है, जिसके तहत आमजन अपने सूचना अधिकार का समुचित प्रयोग कर सकता है। 1. सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 21 में इस एक्ट के तहत जारी आदेश को सिर्फ इसी अधिनियम के तहत अपील के रूप मे चुनौती दी जा सकती है, जबकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है। 2. सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 22 में इस एक्ट को अन्य दूसरे अधिनियम के उपर ओवरराईडिंग का अधिकार है अगर उस एक्ट का कोई उपबन्ध इस अधिनियम के उपबन्ध के विरुद्ध है तो, लेकिन भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 मे इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है। 3. सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 23 के तहत किसी कोर्ट को हस्तक्षेप करने से मना किया गया है, जिसको आधार बनाकर उपभोक्ता मंच इस अधिनियम से सम्बन्धित शिकायत को खारिज कर देते हैं कि वो एक कोर्ट है और सुनवाई वर्जित है, जबकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 में वर्जन का कोई प्रावधान नहीं है। 4. सूचना अधिकार अधिनियम 2005 मे शिकायत या अपील सुनने के लिये सूचना आयोग बनाया गया है, जिसको आधार बनाकर उपभोक्ता मंच इस अधिनियम से सम्बन्धित शिकायत को खारिज कर देते हैं कि उस एक्ट से सम्बन्धित शिकायत या अपील सुनने के लिये सूचना आयोग बनाया गया है आप वहीं जाइये यहां मत आइये, लेकिन भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 मे शिकायत या अपील सुनने के लिये कोई अधिकारी या कोई आयोग नहीं बना है और एकमात्र उपचार उप्भोक्ता मंच है। *कानूनी पह्लु एवम संवैधानिक कोर्ट के आदेश:* 1. सुप्रीम कोर्ट ने 13-09-2012 को रिट संख्या 210 आॅफ 2012 (नामित शर्मा बनाम भारत सरकार) अपने आदेश के पैरा 24 मे कहा है कि सूचना के अधिकार की झलक भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के धारा 76 मे देखने को मिलती है जिसके तहत जन अधिकारी आमजन के द्वारा मांगी गई सूचना देने के लिये बाध्य है। 2. बोम्बे हाईकोर्ट ने क्रिमीनल पिटीशन संख्या 1194 आॅफ 2008 एवम 2331 आॅफ 2006 (सुहास भन्ड बनाम महाराष्ट्र सरकार) का निपटारा करते हुए 18-08-2009 को अपने आदेश के पैरा 10 मे कहा कि कम्पनी के रजिस्ट्रार का आॅफिस एक लोक दफ्तर है एवम वहां के सभी दस्तावेज भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 74 के तहत एक जन दस्तावेज है कोर्ट ने अपने आदेश के पैरा 11 मे कहा कि कंपनी रजिष्ट्रार एक जन आॅफिस है और वो अपने आॅफिस के दस्तावेज की सत्यपित प्रतिलिपी भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 76 के तहत आमजन को देने के लिये बाध्य है। 3. ओडिशा राज्य उप्भोक्ता आयोग ने चिन्तामणि मिश्रा बनाम तह्सीलदार खन्दापाडा के केस का निपटारा करते हुए 19-04-1991 को कहा कि फीस देकर सत्यापित प्रतिलिपी के लिये आवेदन एक पेड सर्विस है, और आवेदक एक उपभोक्ता है जो सेवा में कमी की शिकायत उपभोक्ता मंच को दे सकता है। 4. राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग नई दिल्ली ने पुनरीक्षण याचिका संख्या 2135 आफ 2000 (प्रभाकर ब्यानकोबा बनाम सिविल कोर्ट अधीक्षक) को निपटाते हुए 08-07-2002 को अपने आदेश के पैरा 11 मे कहा कि कोई भी व्यक्ति जो कुछ पाने के लिये पैसे खर्च करता है तो वह उपभोक्ता अधिनियम 1986 के तहत एक उपभोक्ता है। पैरा 15 पर आयोग ने कहा कि कोर्ट के आदेश की सत्यापित प्रतिलिपी को जारी करने की प्रक्रिया कोई न्यायिक प्रक्रिया नहीं बल्कि एक प्रशासनिक प्रक्रिया है। पैरा 16 पर आयोग ने कहा कि उपरोक्त बातों से सहमति जताते हुए हम यह मानते हैं कि, फीस देकर सत्यपित प्रतिलिपि मांगने वाला आवेदक एक उपभोक्ता है एवम फीस लेकर सत्यापित प्रतिलिपी मुहैया कराना एक सेवा। इसलिये अगर आप अपने सूचना अधिकार का प्रयोग करना चाहते हैं लेकिन सूचना अधिकार कानून 2005 पर सन्देह है तो भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 को आजमायें, और वांछित सूचना नहीं मिलने पर सेवा मे कमी की शिकायत उप्भोक्ता मंच मे करें, सफलता जरूर मिलेगी। *महावीर पारीक,खींवज* *सीईओ & फाउंडर,लीगल अम्बिट* *Legal ambit House*

 
 
 

Recent Posts

See All

Comments


Address

AB 208, Vivekanand Marg, Nirman Nagar, Jaipur 302019, India

©2022 by Legal Ambit. Proudly created with Asif Khan

bottom of page