नए पुलिस अधिनयम, 2007 की धारा 55 में यह कहा गया है कि अपराधों की रोकथाम में अब जनता पुलिस को सक्रियता से सहयोग करे. इसके लिए प्रत्येक पुलिस थाने और प्रत्येक पंचायत में ऐसे समूह (सामुदायिक सम्पर्क समूह या CLG ) गठित किये जाने का प्रावधान है. इन समूहों की बैठक नियमित होनी चाहिए और इनका एक संयोजक नागरिकों में से होना चाहिए. वही संयोजक इस बैठक की अध्यक्षता करेगा. पुलिस थाने के प्रभारी, इस समूह के सचिव के रूप में कार्य करेंगे. एक तरह से अब पुलिस को सीधे सीधे स्थानीय जनता के प्रति जवाबदेह होने और उससे तालमेल रखकर चलने को कह दिया गया है. संयोजक को विशेष जिम्मेदारी दी गई है कि वह नियमित रूप से थाने में आकर व्यवस्थाओं पर प्रभारी के साथ सक्रिय संवाद करे.
CLG से अपेक्षा यह रहती है कि वह अपराधों की रोकथाम में पुलिस को सूचनाएं और सहयोग दे. साथ ही कई अन्य काम भी समाज और पुलिस में बेहतर संवाद स्थापित करने के लिए इस समूह को करने हैं.
पर असल में इन समितियों का कचरा कर दिया गया है. लोग इसी में खुश हैं कि वे थाने में जाकर कुर्सियों पर बैठते हैं और गप्पें मार लेते हैं ! अधिकतर जगह पर संयोजक नहीं बनाये गए हैं तो दूसरी ओर इन समूहों में राजनैतिक पदों पर आसीन लोगों को नियम विरुद्ध स्थापित कर दिया गया है. अब यह समूह एक क्लब जैसा हो गया है, जहाँ ईद-दीपवाली या अन्य मौकों पर शान्ति स्थापित करने के लिए लोगों को इकठ्ठा किया जाने लगा है. इन्हें शान्ति समितियों की जगह काम में लिया जाकर मूल उद्धेश्य से बहुत दूर कर दिया गया है. संयोजक की बजाय थाना प्रभारी या उनके उच्च अधिकारी ही अध्यक्षता करते दिखाई देते हैं.
जागरूकता के अभाव में यही होगा. हमें अब इस व्यवस्था को नियम के अनुसार चलवाकर नए पुलिस अधिनियम के मूल उद्धेश्य की पूर्ति करवानी होगी.सूचना के अधिकार से हम जब उचित सवाल पूछेंगे तो अधिकारी भी कितने दिन तक दिखाई देती मक्खी को निगलने को कहेंगे ?
बहुत हो गया कि लोग थाने के नाम से डरते रहे हैं. अब पुलिस किसी अंग्रेज या राजा की नहीं है, हमारी अपनी है तो उससे डर कैसा ? और जब हम पुलिस का वेतन देते हैं तो उसे हमारे प्रति सीधे जवाबदेह होना चाहिए. हाँ. हम जिम्मेदार नागरिकों की तरह नियमों का पालन करें, क़ानून का सम्मान करें.
महावीर पारीक,लाडनूँ
सीईओ & फाउंडर, लीगल अम्बिट
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