पति पत्नी के विवाद में SC की ऐतिहासिक पहल - 30 से ज्यादा केस खत्म ओर 498A पर सख्त दिशानिर्देश
- legalambit ho
- Jul 24
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🔴 पति-पत्नी के विवाद में सुप्रीम कोर्ट की ऐतिहासिक पहल — 30 से अधिक केस खत्म और 498A पर सख्त दिशानिर्देश
🏛️ “जहां न्यायिक प्रक्रिया रिश्तों को और विषाक्त बना दे, वहां समझौता ही सर्वोच्च समाधान है।” – सुप्रीम कोर्ट (2025)
विवाह संबंधी आपराधिक मामलों में झूठे मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ रही है। धारा 498A IPC जैसे कानून, जो महिलाओं को सशक्त बनाने हेतु बनाए गए थे, अब कई बार बदले की भावना से दोषरहित पति और उनके परिवारजनों के खिलाफ दुरुपयोग किए जा रहे हैं।
ऐसे ही एक चर्चित केस — शिवांगी बंसल बनाम साहिब बंसल में — सुप्रीम कोर्ट ने दिनांक 22 जुलाई 2025 को ऐतिहासिक निर्णय दिया, जिसमें 30 से अधिक केसों को खत्म करते हुए गिरफ्तारी पर रोक लगाई, और 498A के दुरुपयोग को रोकने हेतु इलाहाबाद हाईकोर्ट की गाइडलाइंस को लागू करने का आदेश दिया।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित मुख्य आदेश
✔️I. आपराधिक केसों का निस्तारण
• Article 142 के अंतर्गत सभी केस — FIRs, D.V. Act मामले, ट्रांसफर याचिकाएं, कस्टडी विवाद — समाप्त (quashed) कर दिए गए।
✔️II. तलाक एवं अभिरक्षा
• शादी को आपसी सहमति से समाप्त किया गया।
• बच्ची की कस्टडी का साझा निर्णय दिया गया जिसमें दोनों माता-पिता की सहभागिता सुनिश्चित की गई।
✔️III. सार्वजनिक माफीनामा
• पत्नी और उसके माता-पिता को आदेशित किया गया कि वे दो राष्ट्रीय अखबारों में पब्लिकली माफी मांगें, यह स्पष्ट करते हुए कि उन्होंने भावनात्मक रूप से प्रेरित होकर आरोप लगाए जो अनुचित और अपमानजनक थे।
✔️ IV. इलाहाबाद हाईकोर्ट की गाइडलाइंस की पुष्टि
सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से इस निर्णय में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा पारित दिशा-निर्देशों को लागू बनाए रखने का आदेश दिया जो Criminal Revision No. 1126 of 2022 में 13.06.2022 को पारित किए गए थे।
⚖️ इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य:
• परिवार कल्याण समितियों (Family Welfare Committees) का गठन
• झूठे मामलों में तत्काल गिरफ्तारी से बचाव
• पुलिस को सीधे गिरफ्तारी से पूर्व पारिवारिक समिति की रिपोर्ट का इंतजार करना होगा
• 498A IPC के दुरुपयोग को रोकने हेतु निगरानी व्यवस्था का निर्माण
📖 इससे यह स्पष्ट होता है कि सुप्रीम कोर्ट अब 498A के दुरुपयोग को लेकर अत्यंत गंभीर है और राज्यों में पहले से मौजूद दिशा-निर्देशों को लागू करने की आवश्यकता पर जोर देता है।
🔹 युवा वकीलों के लिए शिक्षाप्रद बिंदु
1. 498A IPC में गिरफ्तारी से पूर्व दिशानिर्देशों का पालन कैसे जरूरी है
2. Article 142 का प्रभावी प्रयोग
3. झूठे आरोपों में गिरफ्तारी से संरक्षण के उपाय
4. पब्लिक माफीनामा का कानूनी महत्व
5. परिवार कल्याण समिति का रोल
6. कई केसों का एक साथ निस्तारण कैसे संभव होता है
✍️ यह फैसला कानून और मानवीयता दोनों का अद्भुत संगम है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि जहां रिश्ते सुधारने की संभावना हो, वहाँ अदालतों को दंड नहीं बल्कि समाधान पर जोर देना चाहिए।
साथ ही, इस निर्णय ने उन निर्दोष पतियों और उनके परिवारों को बड़ी राहत दी है जो झूठे आपराधिक मामलों का शिकार होते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट की गाइडलाइंस को लागू करना पूरे देश के लिए एक दिशा बन सकता है|
आप सभी से अनुरोध है कि माननीय उच्चतम न्यायालय इस निर्णय और माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायलय के निर्णय को अवश्य पढ़ें ।
महावीर पारीक
सीईओ & फॉउंडर
लीगल अम्बिट

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