top of page
Search

निथ्या धर्मानंदा बनाम श्री गोपाल सीलुम रेड्डी (2018) 2SCC 93 मामले में धारा 151 सीआरपीसी

NITHYA NITHYA DHARMANANDA VERSUS SRI GOPAL SEELUM REDDY (2018) 2SCC 93 नामक फैसले में धारा 151 सीआरपीसी पर विचार किया गया है इट वास हेल्ड इन पैरा नंबर 6

6.0 यह लगभग सुनिश्चित है कि चार्ज फम के समय तक सेक्शन 91 सीआरपीसी का उपयोग नहीं किया जा सकता है। हालांकि कोर्ट न्याय करने की अपनी जिम्मेदारी के चलते ऐसा करने से वर्जित भी नहीं है। धारा 91 सीआरपीसी के इस्तेमाल के लिए जरूरी है कि कोर्ट को इत्मीनान हो जाएगी जांचकर्ता ने उस दस्तावेज को 4 सीट पर नहीं लगाया है इसलिए वह चार प्रेम के लिए नहीं आए तो जरूरी है।

NITHYA NITHYA DHARMANANDA VERSUS SRI GOPAL SEELUM REDDY माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा नो

9. साधारण: चार्ज की स्टेज पर कोर्ट को उसी सामग्री के साथ आगे बढ़ना चाहिए जो चार्ज शीट में लगी है। लेकिन फिर भी कोर्ट को कभी भी लगेगी धारा 91 सीआरपीसी में चाहे गई सामग्री ऐसी है कि जिसे जांच अधिकारी ने जानबूझकर छोड़ दिया है। तो ऐसी स्थिति में कोर्ट असहाय बना भी नहीं रह सकता है। धारा 91 सीआरपीसी में सामग्री मंगवाने के लिए कोर्ट की संतुष्टि जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त फैसलों से हमें यही संदेश प्राप्त होता है कि यदि ऐसा कुछ भी दस्तावेज है जो कोर्ट रिकॉर्ड में आना चाहिए था अपराध के बारे में संपूर्ण जानकारी देता हूं और जिसे जांच अधिकारी ने नहीं लगाया हो। और जानबूझकर नहीं लगाया हो। ऐसे किसी भी दस्तावेज को कोर्ट में 91 सीआरपीसी की दरकार लगाकर कोर्ट में संबंध करवाया जा सकता है। मुख्य बात यह है कि 91 सीआरपीसी में जो दरखास लगेगी उसका मुख्य आधार न्याय की पुकार होता है। इस केस की निपटारे के लिए इस सामग्री की आवश्यकता है।


।STATE OF ODISHA VERSUS DEBENDRA NATH PADHI (2005) SCC 568

मैं कहा था

25. कोई भी दस्तावेज या दूसरी चीजों को कोर्ट के सामने पेश करने के लिए कहा जा सकता है यदि वह इन्वेस्टिगेशन इंक्वायरी ट्रायल और अदर प्रोसिडिंग अंडर द कोड के लिए जरूरी हो। यह देखना जरूरी है कि वह किस की किस चीज पर जरूरी होगी जहां तक आरोपी का सवाल है उसे डिफेंस एविडेंस से पहले इसकी जरूरत नहीं हो सकती है। चार्ज फ्रेमिगं के समय केवल प्रॉसीक्यूशन मैट्रियल ही जरूरत होती है। अतः उस समय धारा 91 सीआरपीसी शायद ही जरूरी होता हो। धारा 91 सीआरपीसी के तहत आरोपी अपने ही कब्जे में रखे हुए डॉक्यूमेंट को नहीं मंगवा सकता है।

HARDEEP SINGH ETC VERSIS STATE OFF PUNJAB 2014 3 SCC 92

19. कोर्ट न्याय का स्रोत है। और उसका कर्तव्य है कि वह कानून के राज की बात को ऊंचा रखें। हमारे जैसे criminal justice system मैं कोर्ट के पास ऐसी शक्ति होना जरूरी होता है क्योंकि हमारे सामने criminal justice system में यह कोई अजूबा बात नहीं है कि कोई व्यक्ति अपराध करके भी कोर्ट में ट्रायल से बचना चाहे या उस ट्रायल कार्रवाई को ही बीच में रुकवा देना चाहे।


कोर्ट धारा 91 सीआरपीसी के एप्लीकेशन में क्या चेक करेगा

जब यह एप्लीकेशन दरखास्त कोर्ट में लगाई जाएगी तो कोर्ट उसमें तीन बातें देखना चाहेगा

* उस वस्तु का अस्तित्व है या नहीं

* यदि है तो वह किसके पास या अधिकार में है तथा

* क्या वह वस्तु इस मुकदमे में प्रासंगिक है।


कोई व्यक्ति किसी समय अंतराल का मोबाइल सीडीआर मांगता है तो वह अस्तित्व वाली वस्तु है उसके लिए दरखास्त अंतर्गत धारा 91 सीआरपीसी में लगाई जा सकती है। इस तरह कोर्ट को प्रासंगिकता देखी जाए नहीं चाहिए।


यह एप्लीकेशन कब लगेगी

एप्लीकेशन अंडर सेक्शन 91 सीआरपीसी किसी भी स्टेज पर, किसी भी कोर्ट के सामने, जिसमें आपका केस पेंडिंग हो, लगाई जा सकती है।

70 views0 comments

Recent Posts

See All

उपभोक्ता फोरम भी एक अदालत है और उसे कानून द्वारा एक सिविल कोर्ट को दी गई शक्तियों की तरह ही शक्तियां प्राप्त हैं। उपभोक्ता अदालतों की जननी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 है। इस अधिनियम के साथ उपभोक्ता

एक बार भारत की भूमि में, पारदर्शिता की खोज और सूचना के अधिकार ने 2005 के सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम नामक एक शक्तिशाली उपकरण को सामने लाया। जैसे-जैसे सूचना की शक्ति फैलती गई, भारत के लोगों को एहस

Imagine this scenario you have filed an RTI( Right to Information) request to a government department and the PIO( Public Information Officer) and FAA( First Appellate Authority) haven't given you a r

Post: Blog2_Post
bottom of page